Sunday, 10 July 2016

स्वामी विवेकानन्द सर्वश्रेष्ठ अनमोल वचन

1.जो सत्य है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर
लोगों से कहो–उससे किसी को कष्ट होता है
या नहीं, इस ओर ध्यान मत दो। दुर्बलता को
कभी प्रश्रय मत दो। सत्य की ज्योति
‘बुद्धिमान’ मनुष्यों के लिए यदि अत्यधिक
मात्रा में प्रखर प्रतीत होती है, और उन्हें
बहा ले जाती है, तो ले जाने दो–वे जितना
शीघ्र बह जाएँ उतना अच्छा ही है।

2.तुम अपनी अंत:स्थ आत्मा को छोड़ किसी और
के सामने सिर मत झुकाओ। जब तक तुम यह
अनुभव नहीं करते कि तुम स्वयं देवों के देव हो,
तब तक तुम मुक्त नहीं हो सकते।

3.ईश्वर ही ईश्वर की उपलब्थि कर सकता है।
सभी जीवंत ईश्वर हैं–इस भाव से सब को
देखो। मनुष्य का अध्ययन करो, मनुष्य ही
जीवन्त काव्य है। जगत में जितने ईसा या बुद्ध
हुए हैं, सभी हमारी ज्योति से ज्योतिष्मान
हैं। इस ज्योति को छोड़ देने पर ये सब हमारे
लिए और अधिक जीवित नहीं रह सकेंगे, मर
जाएंगे। तुम अपनी आत्मा के ऊपर स्थिर रहो।

4.ज्ञान स्वयमेव वर्तमान है, मनुष्य केवल उसका
आविष्कार करता है।

5.ब्रह्माण्ड कि सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं.
वो हमीं हैं जो अपनी आँखों पर हाँथ रख लेते हैं और
फिर रोते हैं कि कितना अन्धकार है!


6.किसी की निंदा ना करें. अगर आप मदद के लिए
हाथ बढ़ा सकते हैं, तो ज़रुर बढाएं.अगर नहीं बढ़ा
सकते, तो अपने हाथ जोड़िये, अपने भाइयों को
आशीर्वाद दीजिये, और उन्हें उनके मार्ग पे जाने
दीजिये.


7.अगर धन दूसरों की भलाई करने में मदद करे, तो
इसका कुछ मूल्य है, अन्यथा, ये सिर्फ बुराई का एक
ढेर है, और इससे जितना जल्दी छुटकारा मिल जाये
उतना बेहतर है.


8.तुम अपनी अंत:स्थ आत्मा को छोड़ किसी और के
सामने सिर मत झुकाओ। जब तक तुम यह अनुभव नहीं
करते कि तुम स्वयं देवों के देव हो, तब तक तुम मुक्त
नहीं हो सकते..


9.हम ईश्वर को कहाँ पा सकते हैं अगर हम उसे अपने
आप में और अन्य जीवों में नहीं देखते..

10.जो महापुरुष प्रचार-कार्य के लिए अपना
जीवन समर्पित कर देते हैं, वे उन महापुरुषों की
तुलना में अपेक्षाकृत अपूर्ण हैं, जो मौन रहकर
पवित्र जीवनयापन करते हैं और श्रेष्ठ
विचारों का चिन्तन करते हुए जगत् की
सहायता करते हैं। इन सभी महापुरुषों में एक के
बाद दूसरे का आविर्भाव होता है–अंत में
उनकी शक्ति का चरम फलस्वरूप ऐसा कोई
शक्तिसम्पन्न पुरुष आविर्भूत होता है, जो
जगत् को शिक्षा प्रदान करता है।

11.वेदान्त कोई पाप नहीं जानता , वो केवल त्रुटी
जानता है . और वेदान्त कहता है कि सबसे बड़ी
त्रुटी यह कहना है कि तुम कमजोर हो , तुम पापी
हो , एक तुच्छ प्राणी हो , और तुम्हारे पास कोई
शक्ति नहीं है और तुम ये वो नहीं कर सकते .


12.आध्यात्मिक दृष्टि से विकसित हो चुकने पर
धर्मसंघ में बना रहना अवांछनीय है। उससे बाहर
निकलकर स्वाधीनता की मुक्त वायु में
जीवन व्यतीत करो।


13.दिल और दिमाग के टकराव में दिल की सुनो..


14.जो अग्नि हमें गर्मी देती है , हमें नष्ट भी कर
सकती है ; यह अग्नि का दोष नहीं है..


15.बडे-बडे दिग्गज बह जायेंगे। छोटे-मोटे की तो
बात ही क्या है! तुम लोग कमर कसकर कार्य में
जुट जाओ, हुंकार मात्र से हम दुनिया को पलट
देंगे। अभी तो केवल मात्र प्रारम्भ ही है।
किसी के साथ विवाद न कर हिल-मिलकर
अग्रसर हो -- यह दुनिया भयानक है, किसी
पर विश्वास नहीं है। डरने का कोई कारण
नहीं है, माँ मेरे साथ हैं -- इस बार ऐसे कार्य
होंगे कि तुम चकित हो जाओगे। भय किस
बात का? किसका भय? वज्र जैसा हृदय
बनाकर कार्य में जुट जाओ।


16.कुछ मत पूछो , बदले में कुछ मत मांगो . जो देना है
वो दो ; वो तुम तक वापस आएगा , पर उसके बारे में
अभी मत सोचो..


17.आकांक्षा , अज्ञानता , और असमानता – यह
बंधन की त्रिमूर्तियां हैं..



18.जब लोग तुम्हे गाली दें तो तुम उन्हें आशीर्वाद दो
. सोचो , तुम्हारे झूठे दंभ को बाहर निकालकर वो
तुम्हारी कितनी मदद कर रहे हैं..



19.तमाम संसार हिल उठता। क्या करूँ धीरे – धीरे
अग्रसर होना पड रहा है। तूफ़ान मचा दो तूफ़ान!


20.किसी बात से तुम उत्साहहीन न होओ; जब तक
ईश्वर की कृपा हमारे ऊपर है, कौन इस पृथ्वी
पर हमारी उपेक्षा कर सकता है? यदि तुम
अपनी अन्तिम साँस भी ले रहे हो तो भी न
डरना। सिंह की शूरता और पुष्प की कोमलता
के साथ काम करते रहो।

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